नई  दिल्ली । रेड सैंड बोआ सांप यानि कि दोमुंहा सांप बिहार के वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व सहित भारत के कई हिस्सों में पाया जाता है। भारत सहित दुनियाभर में कुछ वन्य जीवों को लेकर अनेक भ्रांतियां फैली हुई हैं, जिनकी वजह से इनकी अवैध तस्करी बड़े पैमाने पर की जाती है।
रेड सैंड बोआ सांप को आम भाषा में दोमुंहा सांप कहा जाता है। इसे लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं, जिनके कारण काले बाजार में इसकी कीमत करोड़ों रुपये तक लगाई जाती है। हालांकि, वैज्ञानिक और वन्यजीव विशेषज्ञ इसे केवल एक भ्रांति मानते हैं। जानकारों के अनुसार, रेड सैंड बोआ पूरी तरह विषहीन और शांत स्वभाव का सांप है। इसे दोमुंहा कहा जाता है, क्योंकि इसकी पूंछ का आकार भी कुछ हद तक सिर जैसा दिखाई देता है, जिससे शिकारी भ्रमित हो जाते हैं। यह सांप आमतौर पर चूहों, मेढ़कों और छोटे पक्षियों का शिकार कर पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है। इसके बावजूद समाज में व्याप्त अंधविश्वास और काला जादू जैसी मान्यताओं के चलते इसे दुर्लभ और शक्तिशाली माना जाता है। तस्करों द्वारा रेड सैंड बोआ को तंत्र-मंत्र, जादू-टोना और शक्तिवर्धक औषधियों के निर्माण के लिए अत्यधिक उपयोगी बताकर महंगे दामों में बेचा जाता है। कुछ लोग इसे व्यापार में सफलता, औद्योगिक उन्नति और दुर्लभ दवाओं के निर्माण से भी जोड़ते हैं।
बताया जाता है कि दक्षिण भारत में इस सांप की बलि चढ़ाकर उद्योग-धंधों को फलने-फूलने की मान्यता है, जबकि दक्षिण-पूर्व एशिया में इसे कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों की दवाओं के निर्माण से जोड़ा जाता है। वहीं, उत्तर भारत में इसे मायावी शक्तियों वाला सांप मानकर इसकी ऊंची कीमत लगाई जाती है। काले बाजार में इस सांप की कीमत 2 करोड़ से लेकर 25 करोड़ रुपये तक बताई जाती है, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इसकी कोई विशेष कीमत नहीं है। यह एक साधारण जीव है, जो पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वन्यजीव अधिनियम के तहत इसे पकड़ना या नुकसान पहुंचाना कानूनी अपराध है, जिसके लिए भारी जुर्माना और जेल की सजा हो सकती है।