मौजूदा दौर में और भी प्रासंगिक हैं परसाई
भोपाल - स्त्रियों के साथ मजाक करना पारिवारिक माहौल में उचित है लेकिन स्त्रियों का उपहास उड़ाना गलत है। उपहास दमितों का किया जाता है जबकि स्त्री समाज की धुरी हैं। हरिशंकर परसाई के साहित्य में स्त्री विषय पर अपने संबोधन में डॉ. मोना परसाई ने यह बात कही।
चर्चा का आयोजन रीडर्स क्लब के मासिक साहित्यिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में किया गया था। परसाई जी की 100वीं जयंती के अवसर पर आयोजित इस संवाद में हिन्दी की सशक्त हस्ताक्षर एवं द संस्कार वैली स्कूल में हिन्दी की अध्यापिका, डॉ. मोना परसाई ने परसाई जी के साहित्य में स्त्री विषय पर चर्चा करते हुए अनेक अनछुए पहलुओं को पाठकों के समक्ष रखा। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि परसाई जी के लेखन में स्त्री विमर्श जैसा कोई श्रृंखलाबद्ध लेखन नहीं मिलता है लेकिन वे छोटे-छोटे प्रसंगों के माध्यम से स्त्री उत्पीडऩ को गहरे ढंग से उकेरते हैं।
डॉ. मोना ने परसाई रचनावली से अनेक प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कहा कि पश्चिम ने स्त्री-पुरुष के बीच तनाव को खत्म करने के लिए तलाक का रास्ता अख्तियार कर लिया है लेकिन हमारे यहां चोरी-छिपे काम हो रहे हैं। विवाद की स्थिति में गांव में कुल्हाड़ी से हत्या कर दी जाती है तो शहर में स्त्री को जहर देकर मार डाला जाता है। यह आज का भी सच है। उन्होंने कहा कि स्त्रियों के लिए सांकेतिक शब्द गढ़े गए हैं, जैसा कि पत्नी के लिए मकान। ऐसे में सवाल उठता है कि स्त्री मकान है तो पति को चौराहा कहे जाने में क्या गलत है।
डॉ. मोना परसाई ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्त्री विमर्श के मुद्दे को उठाया। उनका कहना था कि आज का स्त्री विमर्श और परसाई जी के स्त्री लेखन में बुनियादी अंतर है। आज स्त्री विमर्श अपने क्षेत्र में कामयाब स्त्रियों की बात करता है जबकि परसाई जी समूचे स्त्री समाज की चिंता करते हैं। ऐसे ही कई प्रसंगों के जरिए उन्होंने श्रोताओं को हरिशंकर परसाई के साहित्य से जोड़ा। इस कार्यक्रम का संचालन मनीषा शर्मा ने किया। अतिथि वक्ता का स्वागत श्रीमती कृति ने किया एवं आभार प्रदर्शन रीडर्स क्लब के संयोजक मनोज कुमार ने किया।